जीवनदायनी नदियों पर ठेका कंपनी का बरस रहा कहर नियम विरूद्ध खनन जारी.....
कलेक्टर के आदेशों की अवहेलना करते हुए रात के अंधेरे में किया जा रहा उत्खनन......
एन.जी.टी. के कायदों को धता बताकर नदियों का सीना चीर रहे के.जी डेवलपर....
इंट्रो - अनूपपुर जिले में जगह -जगह नियम विरुद्ध नदियों पर खनन का कार्य किया जा रहा है, जिसके लिये प्रमुख रूप से खादीधारी जिम्मेदार है जिले में कैबिनेट मंत्री व शहडोल संभाग के प्रभारी मंत्री व अनूपपुर विधानसभा के विधायक का घर भी होने के बाद भी जीवन दायनी सोन नदी के सीने में हैंबी मशीन उतारकर लगातार छलनी किया जा रहा है फिर चाहे बात सोन नदी की हो या फिर केवई या जिले की जीवन देनी अन्य नदियों की हर तरफ बस एक सा हाल है। कैबिनेट मंत्री के जिले की यह हाल है तो बाकी प्रदेश की तो बात ही नहीं की जा सकती केजी डेवलप कंपनी का मनोबल इतना बढ़ चुका है कि वह मनमाना रवैया अपनाते हुए लगातार रेत खदान के आड़ में अवैध उत्खनन कराया जा रहा है चोकाने वाली बात तो यह है कि जहां अवैध उत्खनन हो रहा है वहां से जिले के सभी बड़े कार्यालय मिनिमम 500 मीटर के अंदर पर हैं फिर भी अनूपपुर के खनिज विभाग के जिम्मेदार मानो ठेकेदार एवं खादी के सामने नतमस्तक है बगल में होता रहता है उत्खनन पर माईनिंग अधिकारी के कानों में जू नही रेंगता।
अनूपपुर (प्रकाश सिंह):- अनूपपुर जो की एक समय जीवनदायनी नदियों के लिए प्रदेश भर में अपनी अलग पहचान रखता था अब माफियाओं और ठेका कम्पनी की कहर की वजह से अपने अस्तित्व की लताश में जुटा हुआ है। अनूपपुर के सोन केवई नदी पर नियम विरुद्ध तरीके से खनन चल रहा है इस आपदा काल में भी के केजी डेवलपर्स द्वारा जिले के खनिज का दोहन करते नजर आए लेकिन जनता की मदद के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था को लेकर नजर नहीं आई फिर भी कई जगहों में दिन हो या रात तेजी से उत्खनन कर जिला कलेक्टर के आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए नजर आ रही है जस्ट माइनिंग विभाग ऑफिस के बगल में सीतापुर रेत खदान में रात के अंधेरे में हेवी मशीन उतार कर लगातार उत्खनन किया जा रहा है फिर भी जिम्मेदारों के कानों में जूं न रेंगना उनकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्हं लगा रहे हैं।
सोन नदी के प्रवाह को छिछले तालाबों में किया परिवर्तित.....
बात यदि अनूपपुर की जाएं तो वहां तो जिला मुख्यालय से महज एक किलोमीटर दूर भगवा के रंग से रंगे केजी डेवलपर्स ठेंका कंपनी के करिन्दों के द्वारा सोन नदी जो कि तेज प्रवाह के साथ बहती थी। उसे छिछले तालाबों में परिवर्तित कर दिया गया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मुख्यालय से महज एक किलोमीटर की दूरी पर खनिज विभाग के अधिकारियों एवं एक अरसे से पदस्थ खनिज अधिकारी पी.पी राय का कार्यालय है, तो कार्यालय के बगल में जिले के मुखिया कलेक्टर का दरबार है। जहां हर कोई न्याय की उम्मीद से आता है। पर मां की तरह जिले में पूजी जाने वाली नदी को इंसाफ दिलाने में क्यों असफल साबित हो रहे है।जहां रेत के नाम पर माफिया सक्रिय है और टी.पी. के नाम पर बिना टी.पी. रेत का खनन जारी है।
सुनहरी रेत पर खादी का कब्जा......
प्रदेश में भाजपा शासन आने के बाद जिले व संभाग में कुर्ते की क्रीज चढ़ाकर जगह-जगह माफिया जिम्मेदार अधिकरियों के उपर दबाव बनाकर अवैध खनन करा रहे है वही अनूपपर में तो प्रत्यक्ष रूप से भगवाधारी ने जिले भर में अपना आतंक जमा रखा है, बात यदि प्रशासन की जाएं तो हर जिले में खनिज निरीक्षक खनिज अधिकारी, एस.डी.एम. व कलेक्टर एवं पुलिस का समुचित अमला मौजूद होने के बाद भी कार्यवाही शून्य प्रतीत हो रही है। कार्रवाई ना होने के कारण ठेकेदार के हौसले लगातार बुलंद होते नजर आ रहे हैं जिसके कारण जगह-जगह अवैध उत्खनन तेजी से किया जा रहा है जिससे शासन प्रशासन को राजस्व की हानि भी पहुंच रही है।
आपदा काल में के.जी डेवलपर्स नहीं आई मदद के लिए आगे....
जिले में स्थित चचाई धर्मल पावर प्लांट, मोजर बेयर प्लांट, रिलायंस गैस प्लांट द्वारा इस संक्रमण काल को देखते हुए व्यवस्था के अभाव में जूझ रहे लोगों को देखते हुए कंपनियों द्वारा लगातार हॉस्पिटल के लिए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पीपीटी ऑक्सीजन सिलेंडर वह तरह-तरह की मेडिकल उपकरणों को जिला कलेक्टर के सामने देते दिखाई दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर जिले के सक्षम लोग भी मदद करते दिखाई दे रहे हैं लेकिन जिले के खनिज की जान कहे जाने वाली रेत खदानों का ठेका लेने वाला कंपनी के.जी डेवलपर द्वारा किसी भी मदद के लिए नहीं नजर आई और लगातार जगह जगह वैध खदानों के आड़ में अवैध खदान संचालित करते हुए उत्खनन किया जा रहा है जन चर्चाओं की माने तो माइनिंग विभाग के बगल में स्थित सीतापुर रेत खदान व चचाई में भी रात के अंधेरे में हैबी पोकलैंड मशीन उतार कर लीज क्षेत्र से हटकर उत्खनन जारी कर एन.जी.टी के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए नदी से गीले रेत का उत्खनन कर परिवहन किया जा रहा है जो सीधे-सीधे माइनिंग विभाग की मौन सहमति को प्रदर्शित करता है।
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