राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बचों की शिक्षा अधिकार को प्राथमिकता देगी:- अध्यक्ष देबेन्द्र मोर
अनूपपुर /कोतमा:- हाड संस्था के संचालक सुशील शर्मा ने बताया कि 19 दिसंबर- को संस्था के द्वारा लर्निंग रिकवरी प्रोग्राम की आवश्यकता और शिक्षा अधिकार अधिनियम की स्थिति पर एक नई तथ्यान्वेषी अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में महामारी के कारण लंबे समय तक स्कूल बंद रहने के चलते, 64% छात्र पढाई को लेकर खोया हुआ महसूस करते हैं, क्योंकि सीखने के गैप के कारण उनकी समझ में कमी आई है | कोविड-19 महामारी के कारण जो उनकी आयु-उपयुक्त सीखने की क्षमता को बढ़ाने की थी वो अवसर के अभाव में सीमित होकर रह गई और अधिक आसानी से विचलित होने के लिए उनको मौका दिया । राज्य के 5.4% स्कूलों में शिक्षा अधिकार अधिनियम अधिनियम के लागू होने के 12 साल बाद भी पीने के पानी की सुविधा नहीं है, जिसका राज्य के स्कूली बच्चों की शिक्षा पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
अध्ययन में एलआरपी पर 839 छात्रों , आरटीई मानदंडों पर 478 एसएमसी, माता-पिता और समुदाय के सदस्यों , ड्रॉपआउट पर 118 उत्तरदाताओं और बच्चों और उनके माता-पिता , माइग्रेशन पर 110 उत्तरदाताओं को शामिल किया गया है । यह अध्ययन आत्मशक्ति ट्रस्ट एवं होलिस्टिक एक्शन रिसर्च एंड डेवलपमेंट (HARD) सहित स्थानीय अन्य तीन संस्थावो द्वारा रूप से किया गया है , जिसमें 5 जिलों (सिंगरौली, अनूपपुर, शहडोल, छिंदवाड़ा और बैतूल) के 350 गांवों को शामिल किया गया है ।
इस रिपोर्ट को बिमोचन करते हुए मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष देबेन्द्र मोरे बोले की “बच्चों के शिक्षा अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए आयोग संकल्पबद्ध है और इस रिपोर्ट में जो तथ्य आये हें , इसके ऊपर आयोग गौर करेगी और उचित कदम उठाएगी ।
साथ ही इस कार्ज़्यक्रम में भोपाल के शिशु मंगल समिति के अध्यक्ष श्रीमती जागृति किरार, आत्मशक्ति ट्रस्ट के कार्ज्यनिर्बाही ट्रस्टी रुचि काश्यप, मध्य प्रदेश राज्य शिक्षा अधिकार फॉरम के आबाहक अनुपा , गैर सरकारी संगठन हार्ड के मुख्य सुशील कुमार शर्मा, अज़ीम प्रेमजी फ़ौण्डेसन के प्रतिनिधि सरी आलोक सिंह, एकलव्य संस्था के निकिता समेत अन्य अतिथि गण शामिल होकर राज्य में पांडेमिक के बाद बच्चो के शिक्षा के बारे में बिचार बिमर्श किया ।
फैक्ट फाइंडिंग अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष फैक्ट
फाइंडिंग रिपोर्ट से पता चला कि 36% (172) स्कूलों में स्वीकृत पदों की संख्या की तुलना में 1 शिक्षक की कमी है। पर्याप्त शिक्षकों की कमी के कारण मध्य प्रदेश में स्कूली शिक्षा बहुत प्रभावित हो रही है। इसी तरह 22% (105), 22.8% (38), और % (19) स्कूलों में क्रमशः 2,3 और 4 शिक्षकों की कमी है। रिपोर्ट से पता चला कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा एलआरपी को लेकर कोई कार्यक्रम नहीं शुरू किया है , जो बच्चों को शिक्षा की परिधि में रहने के लिए मजबूर करेगा, जिस कारण छात्रों को COVID-19 महामारी के दौरान सीखने के नुकसान से उबरना कठिन होगा।
तथ्य-खोज रिपोर्ट से पता चला है कि कुल 118 ड्रॉपआउट मामलों में से 67.8% एसटी, 10.2%, 17.8% और 4.2% क्रमशः एससी, ओबीसी और सामान्य श्रेणियों से हैं। फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट के अनुसार 42.4% छात्रों के पास पढ़ने का कोई अवसर नहीं था, और न ही उनके पास पढ़ने की गतिविधियों में संलग्न होने की कोई गुंजाइश थी क्योंकि COVID-19 महामारी के दौरान विभिन्न मुद्दे थे। प्रवासन और बच्चों पर इसका प्रभाव: साक्षात्कार में भाग लेने वाले कुल 118 छात्रों में से 60% ने कहा कि वे अस्थायी रूप से पलायन कर रहे थे। 40% ने कहा कि इलाके में आजीविका के अपर्याप्त अवसरों के कारण वे बाहर चले गए। इसके अलावा, 90% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे स्वेच्छा से बाहर चले गए, जबकि अन्य 10% ने कहा कि वे लंबित ऋण चुकाने के लिए पलायन कर गए ।
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