विन्ध्य के प्रत्येक जिलों में हो रहा है विन्ध्य लोक रंग का आयोजन
आज शहडोल में मान्या पाण्डेय के बघेली लोकगीतों की होगी प्रस्तुती
शहडोल। विन्ध्य लोक रंग महोत्सव का आयोजन विन्ध्य के रीवा एवं शहडोल संभाग के प्रत्येक जिलों में हो रहा है। लोक रंग महोसत्सव में बघेली लोक गीतों की प्रस्तुती होती है और स्थानीय ऐसे लोक कलाकार जो अपनी गायकी और बादकी छोड़ चुके है या अभी भी अपनी लोक कला को जीवित किये हुये है। उन्हें को सम्मानित किया जाता है। उक्त बातें शहडोल पहुंची राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय ने मीडिया से चर्चा करते हुए कही। उन्होंने बताया कि विन्ध्य लोक रंग महोत्सव का आयोजन करने का उद्देश्य, विन्ध्य के लोक गीतों का विस्तार हो और वर्षों पूरानी लोक कलाओं से आज की युवा पीड़ी पहचाने, देखें, सुने और अपने पुरखों से मिली लोक संगीत की धरोहर को आगे बढ़ाये। शुश्री मान्या पाण्डेय ने बताया कि विन्ध्य के लोकगीत वांची पराम्परा से एक दूसरे के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी से आगे बढ़त चले आ रहे है। हमारे लोकगीतों में प्राकृतिक सौदर्य, आपसी सदभाव, परिवारिक रिस्ते की मजबूती, परिवार के प्रेम स्नहे, जल-जंगल- जमीन के रक्षा, भगवान के आराधाना आदि का वर्णन रहत है। उन्होंने ने बताया कि विन्ध्य में लोक गीत 5 प्रकार से गाये जाते है। जिसमें संस्कार गीत, ऋतुगीत, श्रम गीत, झुष्ठान एवं देवी गीत, जातिय गीत शामिल है। हमार यहां संस्कार गीत शादी व्याह में 48 प्रकार के गाये जाते है जिसमें वर पक्ष यानी दूल्हा के तरफ से 26 एवं बधु पक्ष यानी की दुल्हन के पक्ष से 22 प्रकार से गाये जात है। हिन्दू रीति रिवाज बिना किसी गीतों के सम्पन्न नही होते। जब बच्चा जन्म लेता तभी से उसको लोकगीत सोहर के रूप में सुनने को मिलने लगता है। हम सबके जीवन का लोक गीत अभिन्न अंग रहे है। किन्तु आज चकाचौद में हमारे लोकगीत विलूप्त होत जाते आत है और अब गांवों में दीदी-नानी के माध्यम से सुनने को मिलते है। हम सबको आपनी पहचान, आपनी लोक पराम्परा, आपना संस्कार, आपनी संस्कृति महत्व देने व उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। हम भी अपने लोकगीतों के द्वारा अपनी लोक परम्परा को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही हूं।
फिल्मों में गाये जाते थे विंध्य के लोकगीत
विंध्य के प्रसिद्ध लोक गायक एवं लोक साहित्यकार नरेंद्र बहादुर सिंह ने मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि जब फिल्मों की सुरूआत हुई थी तब उसमें लोकगीत ही गाये जाते थे और यह सिलसिला करीब 70 के दसक तक चला। फिर फिल्मों में अलग हट कर गीत गाये जाने लगे और लोक गीतों का महत्व घट गया। 1959 में कृष्णा चोपरा द्वारा निर्देशित फिल्म हीरा मोती में हमारे विन्ध्य के ऋतु गीत कजरी गाया गया था। जिसमें सुभन कल्याणपुर एवं सुधा मल्होत्रा ने गाया था। गीत के बोल थे, काउने रंग मुगवां, काउने रंग मोतिया, काउन रंग ना। ननदी तोहार विरनमा काउने नंग ना। अभी फिल्मों जो भी लोकगीत गाये जाते हैं वह काफी चर्चित होते हैं।
बघेली लोकगीतों का मान्या पाण्डेय कर रही है विस्तार - नरेंद्र
विंध्य के सबसे चर्चित लोक गायक नरेन्द्रबहादुर सिंह ने बताया कि देश भर में राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय बघेली गीतों का विस्तार कर रही है। वह देश के 22 प्रदेशों में बघेली लोकगीतों की प्रस्तुत कर चुकी है। मान्या पाण्डेय मूल रूप से बघेली लोक गीत गाती है पर वह बुंदेली, मैथिली, बृज, अवधी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, राजास्थानी, पंजाबी एवं मराठी में भी गा लेती हूं। वह इस समय सीधी पर्यटन एवं सीधी पुलिस, आर्टिस्ट यूनियन बिहार की ब्रांड एम्वेस्ट है और भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय, मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग, म.प्र. स्वराज संस्थान, मध्य प्रदेश जन सम्पर्क की प्रमुख गायिका हैं। वह 5 वर्ष की उम्र से 2015 से मंचीय कार्यकम करने लगी हूं और अब तक करीब 347 मंचों में अपनी प्रस्तुती देश भर में दे चुकी हूं। बिहार के चर्चित लोक गायिका मैथली ठाकुर के साथ 2 बार दिल्ली में प्रोग्राम कर चुकी हूं। उन्हे अब तक शासकीय एवं अशासकीय संस्थाओं के द्वारा 238 सम्मान मिल चुके है। 2023 रीवा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मान्या पाण्डेय का कार्यकम धरती काहे पुकार के को 11 मिनट तक खड़े हो कर देखा था। भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय ने उन्हें वर्ष 2019 में देश की सबसे छोटी लोक गायिका की उपाधी प्रदान की थी। वह मध्य प्रदेश की सबसे छोटी उम्र की बड़ी गायक कलाकार हैं।
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